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हरे उदासी हरियाली नित

हरियाली(गीत-16/14)
हरे उदासी हरियाली नित,
लोचन-प्यास बुझाती है।
बन आभूषण यह धरती का,
उर में प्यार जगाती है।।

हरे-भरे खेतों की शोभा,
देख हृदय उत्साहित हो,
शीघ्र शांति पाता मन चिंतित,
यदि वह कष्ट-प्रभावित हो।
हरियाली हर पीड़ा मन की,
दुःख से मुक्ति दिलाती है।।
     उर में प्यार जगाती है।।

नदी-कूल पर उगे वृक्ष सब,
पवन-वेग पा जब झूमें।
हरियाली की चादर ओढ़े,
लगे,प्रकृति मानो घूमें।
नदी-नीर की कल-कल धारा,
जीवन-राह बताती है।।
       उर में प्यार जगाती है।।

हरियाली-आच्छादित वन ये,
सुख देते हैं आँखों को।
गाते पंछी गीत सुरीले,
करते शोभित शाख़ों को।
मृग-छौनों की चपल कुलाँचें,
कहें,ज़िंदगी भाती है।।
      उर में प्यार जगाती है।।

हरियाली से करें धरा को,
फिर से हरित सभी मिलकर।
वृक्ष लगाएँ, फसल उगाएँ,
करें सुखी जीवन जुटकर।
हरियाली जीवन की औषधि,
अंतरकलह मिटाती है।।
       उर में प्यार जगाती है।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

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8 Comments

Varsha_Upadhyay

06-Feb-2023 05:17 PM

शानदार

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अदिति झा

06-Feb-2023 11:59 AM

Nice 👌

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Renu

05-Feb-2023 11:57 AM

👍👍🌺

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